एक स्वस्थ एवं संवहनीय विश्व के निर्माण के लिए प्रयासरत

बनिए परिवर्तन के साथी

मर्सी फ़ोर एनिमल्स भारत का एक कार्यक्रम

सहभागी संस्थाओं द्वारा इस कार्यक्रम को लागू करने से प्रतिवर्ष यह लाभ होगा

> एक करोड़

भोजन पर प्रभाव

> 6,500 हेक्टेयर

भूमि का संरक्षण (यह औसत आकार के 6,500 फ़ुटबाल मैदान के बराबर है)

>10 करोड़

लीटर पानी की बचत (जिससे सामान्यतः लगभग 18 लाख लोग स्नान कर सकते हैं)

>2.1 करोड़

टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन पर लगाम (इतना प्रदूषण चालिस हजार बार दिल्ली से बंगलोर कार से यातायात करने पर होगा)

क्यों?

प्रसिद्ध स्वास्थ्य संगठनों के अनुसार, फल, अन्न और साग-सब्ज़ियों के कम एवं पशु-उत्पादों के अधिक उपभोग के कारण मोटापा, मधुमेह, और कैंसर जैसे घातक रोगों की संभावना बहुत बढ़ जाती है। साथ ही साथ, इसका सीधा संबंध वनों की कटाई और जल के अपव्यय जैसे पर्यावरणीय समस्याओं से भी है।

संयुक्त राष्ट्रसंघ के अनुसार, मानवप्रेरित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का चौदह दशमलव पाँच प्रतिशत (14.5%) हिस्सा केवल पशुपालन उद्योग से आता है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली के शोधकर्त्ताओं ने भी पाया है कि वर्ष 2012 में भारतीय पशुपालन उद्योग से होने वाले मिथेन उत्सर्जन का आँकड़ा पन्द्रह दशमलव तीन प्रतिशत (15.3%) था। मिथेन एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है। भारत के विशाल पशुपालन उद्योग से होने वाले भारी कार्बन उत्सर्जन का प्रभाव वैश्विक जलवायु परिवर्तन पर भी पड़ता है।

इसके अलावे, हमारी वर्तमान खाद्य उत्पादन प्रणाली भी अप्रभावी है, क्योंकि हम कई पोषक तत्व सीधे मनुष्यों के बदले पशुधन को खिलाते हैं जिसके परिणामस्वरूप वैश्विक भूखमरी निरंतर बढ़ती जा रही है। संयुक्त राष्ट्रसंघ की संस्था खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार वैश्विक भूख सूचकांक में भारत अत्यंत कुप्रभावित देश के रूप में 119 में से 103वें रैंक पर आया है।

इन समस्यायों को ध्यान में रखते हुए, भारत एवं विश्व भर में अनेक संस्थाएँ कॉन्शस इटिंग इंडिया जैसे कार्यक्रमों की साझेदारी में, संयुक्त राष्ट्रसंघ जैसे संगठनों के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए, वनस्पति आधारित आहारों को बढ़ावा देने एवं पशु उत्पादों के न्यूनतम उपभोग के लिए नयी खाद्य निति लागू कर चुकी हैं।

इस परिवर्तन से होने वाले प्रमुख लाभों पर एक नजर डालिए!

स्वास्थ्य

संतृप्त वसा का न्यूनतम सेवन

कॉलेस्टरॉल स्तर में कमी

अनेक प्रकार के कैंसर रोग की कम संभावना

उच्च रक्तचाप के दर में कमी

मोटापे के दर में कमी

संवहनीयता

ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी

जैवविविधता पर पड़ने वाले कुप्रभावों में कमी

जल संरक्षण

वनों की कटाई में कमी

उत्पादन के उचित प्रारूपों को समर्थन

वैश्विक भूख

वैश्विक भूख की वृद्धि को रोकना

ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत के रैंक में सुधार करना

संसाधनों का प्रभावी उपयोग

पशुधन के बदले खाद्यान्न सीधा मनुष्यों को देना

विश्व भर में अतिरिक्त तीन सौ पचास करोड़ लोगों को भोजन मुहैय्या करवाना

परिवर्तन के लिए समर्थन

मेनका गाँधी

“एक किलोग्राम मांस के उत्पादन के लिए ग्यारह किलोग्राम अनाज पशुओं को खिलाना पड़ता है और एक पशु को अपने जीवनकाल में साठ हजार लीटर पानी की आवश्यकता होती है। यह पर्यावरण पर बहुत बड़ा भार है जो कि संवहनीय नहीं है।”

मेनका गाँधीकेन्द्रीय मंत्री, महिला एवं बाल विकास विभाग, भारत सरकार

“एक ऐसी दुनिया में जहाँ अधिक से अधिक लोग पश्चिमी आहार अपनाते हैं - जो मांस, डेयरी और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों से भरा है। हमारे पशुओं को खिलाने के लिए फसलों का उत्पादन हमारे प्राकृतिक संसाधनों पर भारी दबाव डाल रहा है और जैव-विविधता की व्यापक हानि का एक सबल कारक है।

हार्वर्ड हेल्थ

"यदि आप लंबे एवं स्वस्थ जीवन के लिए प्रयास कर रहे हैं, तो सेम, मेवा और अनाज से प्रोटीन प्राप्त करना मांस या अंडे से प्रोटीन प्राप्त करने की तुलना में बेहतर शर्त है, नए शोध में पाया गया है।"

"वर्तमान स्तर के सापेक्ष 2050 तक मांस और डेयरी उत्पादन में 50% की कमी से कृषि क्षेत्र से उस समय तक जीएचजी उत्सर्जन में अनुमानित उत्सर्जन के मुकाबले में 64% की कमी आएगी।"

ग्रीनपीसलेस इज मोर: रिड्युसिंग मीट एंड डेयरी फ़ोर अ हेल्दियर लाइफ़ एंड प्लानेट

ये हमारे उद्देश्यों में विश्वास रखते हैं।

भारत

जर्मन इंटरनेशनल स्कूल, चेनई, 100 प्रतिशत वनस्पतिक आहारी

भारत के चेन्नई में जर्मन इंटरनेशनल स्कूल, अगस्त 2017 से पूरी तरह से वनस्पति-आधारित हो गया है। विद्यालय में इस बड़े परिवर्तन का एक कारण है पर्यावरण पर मानवीय प्रदूषण के प्रभाव को कम करना। विद्यालय का कहना है, जीआईएससी में हमारी आहार योजना बच्चों को नैतिक और दीर्घकालिक आहार व्यवहार की आदतों को सीखने में मदद करके उत्कृष्ट प्रभाव पैदा कर रही है। हमारे शेफ बच्चों के संवेदी आहारेन्द्रियों को विभिन्न प्रकार के सुस्वादु व्यंजनों से अवगत करवाकर उनके फल और सब्ज़ियों के उपभोग को बढ़ावा दे रहे हैं।”

भारत की अग्रणी होस्टल शृंखला, ज़ोस्टल कर रहा है मांसाहार एवं दुग्धाहार में तीस प्रतिशत की कमी

भारत की सबसे बड़ी होस्टल शृंखला, जोस्टेल, ने आगरा में मांस और डेयरी उत्पादों की खपत में लगभग 30 प्रतिशत की कटौती कर रहा है। छात्रावास ने अपने मेनू को अपडेट किया है, जिसके परिणामस्वरूप प्रति वर्ष 5,200 अतिरिक्त वनस्पति आधारित भोजन परोसा जाएगा। यह परिवर्तन जोस्टेल के एक पर्यावरण-संवेदी होस्टल शृंखला होने की नीति के अनुरूप है, जहां वे अपने अतिथियों को कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए #travelgreen प्रतिज्ञा लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। ज़ोस्टल भारत भर में अपने सभी 28 स्थानों में वनस्पति-आधारित मेनू पेश करना चाहता है।

कोवर्किंग कंपनी “वीवर्क” ने पर्यावरणीय चिंताओं के कारण शुरु किया वैश्विक शाकाहार अभियान

200 करोड़ की कीमत वाली स्टार्ट-अप कंपनी जो भारत में बीस से ज़्यादा साझा-कार्यस्थान प्रदान करती है, पूरी तरह से शाकाहारी हो गयी है। वीवर्क के सह-संस्थापक मिगुएल मैककेल्वे ने कहा कि कंपनी पर्यावरणीय कारणों से मांस को आहार-सूची से हटा रही है। "नए शोध से संकेत मिलता है कि मांस का त्याग एक महत्वपूर्ण उपाय है जिससे मनुष्य अपने व्यक्तिगत पर्यावरण प्रदूषण में प्रभावी कमी ला सकता है, यहाँ तक कि हाइब्रिड कार अपनाने से भी ज्यादा प्रभावी।"

वैश्विक

प्रमुख उत्तर अमेरिकी नगर और स्कूल डिस्ट्रिक्ट मांसाहार कम करने के वैश्विक अभियान में शामिल

2012 में लॉस एंजिल्स वाशिंगटन, डीसी, सैन फ्रांसिस्को और वैंकूवर जैसे शहरों की सूची में शामिल हो गया, जिन्होंने स्वास्थ्य एवं पर्यावरण की दीर्घकालिकता के लिए नागरिकों और संस्थाओं से कम मांसाहार करने के लिए एक अभूतपूर्व प्रस्ताव पारित किया था। लॉस एंजिल्स यूनिफाइड स्कूल डिस्ट्रिक्ट, यू.एस. का दूसरा सबसे बड़ा स्कूल डिस्ट्रिक्ट है, जहाँ प्रति दिन 700,000 से अधिक भोजन परोसा जाता है और सोमवार को मांसाहारी भोजन परोसने के लिए प्रतिबद्ध दर्जनों अमेरिकी स्कूल डिस्ट्रिक्ट में से एक है।

ब्राज़िल के सबसे बड़े शहर ने लागू किया ऐतिहासिक निरामिष सोमवार कार्यक्रम

ब्राज़िल के साओ पाउलो शहर ने अपने पूरे पब्लिक स्कूल सिस्टम में मांसाहार में कमी की रणनीति बनाई है। यहाँ प्रति दिन छात्रों को दस लाख से अधिक भोजन परोसा जाता है। सप्ताह में एक दिन, यह स्कूल छात्रों को मांसाहारी व्यंजनों के बदले सुस्वादु पादपीय प्रोटीन से युक्त एवं अन्य पोषक तत्वों से भरपूर परिचित आहार पैकेट देता है।

हाँगकाँग सरकार ने शुरु किया EATSMART ऐट स्कूल कैम्पस

हाँगकाँग में, 2006 में, शिक्षा ब्यूरो सहित अनेक संगठनों और एजेंसियों के एक गठबंधन ने मोटापे, हृदय रोग, कैंसर और मधुमेह सहित पुरानी बीमारियों को रोकने में आहार की भूमिका का हवाला देते हुए ईटस्मार्ट ऐट स्कूल कैम्पस अभियान शुरू किया था। फल और सब्जी की खपत को बढ़ावा देना कार्यक्रम का एक प्रमुख उद्देश्य है, जिसके पोषण संबंधी दिशानिर्देश स्कूल के दोपहर के भोजन में मांस की मात्रा को सीमित करने की भी सलाह देते हैं।

हमारे बारे में

अच्छे स्वास्थ्य एवं पृथ्वी के सुरक्षित भविष्य के लिए जिम्मेदार खाद्य चयन नितांत आवश्यक है।

कॉन्शस ईटिंग, इंडिया, स्वस्थ एवं संवहनीय जीवन शैली का प्रचार-प्रसार करने वाली एक गैरलाभुक संस्था, मर्सी फ़ोर एनिमल्स का एक कार्यक्रम है। हम पूरे भारत और दुनिया भर के पाककर्मियों (शेफ), पोषणविदों एवं आहार उद्योग के पेशेवरों के साथ मिलकर सरकारी संस्थाओं, विद्यालयों, विश्वविद्यालयों एवं कंपनियों की आहार सूची में वनस्पति आधारित व्यंजनों को शामिल करवाने के लिए काम करते हैं। अपने भोजन से केवल बीस प्रतिशत मांस एवं अन्य पशु-उत्पादों के स्थान पर स्वादिष्ट वनस्पतिक विकल्प अपनाकर आप अपनी संस्था के लिए धन बचा सकते हैं, साथ ही साथ, अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा दे सकते हैं और भविष्य की पीढ़ी के लिए पर्यावरण की सुरक्षा भी कर सकते हैं।

हम कैसे काम करते हैं

राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय आहार दिशा-निर्देशों के अनुसार हम कैंटीन, कैफ़ेटेरिया एवं भोजनालयों में परोसे जाने वाले भोजनों में कम से कम बीस प्रतिशत पशु-उत्पादों को हटाकर स्वास्थ्यवर्द्धक एवं पोषक वनस्पतिक विकल्पों को रखने का अनुमोदन करते हैं।

बिल्कुल मुफ़्त: आपका एक पैसा भी नहीं लगता है

एक गैरलाभुक सलाहकार कार्यक्रम के रूप में हम इससे संबंधित सभी प्रकार के परामर्श, प्रशिक्षण और साजो-सामान निःशुल्क उपलब्ध कराते हैं।

विशेषज्ञ टीम

कॉन्शस इटिंग इंडिया के साझीदार के रूप में, आपको मिलता है पोषणविदों और वनस्पतिक व्यंजनों में विशेषज्ञताप्राप्त तथा आहार-सूची निर्माण, व्यंजन-रचना और पाककला के प्रशिक्षण में निपुण पाककर्मियों का समर्थन।

संवाद

हम आपकी संस्था को पशु उत्पादों के कमतर उपभोग द्वारा होनेवाले पर्यावरणीय एवं स्वास्थ्य-संबंधी लाभ को उजागर करने वाले सूचनाप्रद साजो-सामान उपलब्ध करवाते हैं।

मीडिया

हमारे पास एक आन्तरिक जन-संपर्क (पीआर) टीम है, जो स्वास्थ्य एवं संवहनीयता (सस्टेनेबलिटी) को बढ़ावा देने की दिशा में आपकी प्रतिबद्धता के लिए सकारात्मक मीडिया-कवरेज दिलाने हेतु आपके साथ कार्य कर सकती है।

प्रमाण-पत्र

एक सहभागी संस्था के रूप में, आपको कॉन्शस इटिंग प्रमाण-पत्र प्राप्त होता है, जो संवहनीय एवं स्वास्थ्यपूर्ण आहार विकल्प को बढ़ावा देने में आपके विश्वव्यापी नेतृत्व को प्रमाणित करता है।

हमसे जुड़िए

क्या आप अपनी संस्था में कॉन्शस इटिंग कार्यक्रम लागू करना चाहते हैं? क्या आपके पास ऐसे संस्थाओं के संपर्क हैं जिनसे आप हमें जोड़ सकते हैं? नीचे दिए गये फ़ार्म को भरकर जमा कीजिए, हम आपसे शीघ्र ही संपर्क करेंगे।

हमारी टीम

एलन डैरर

एलन डैरर

निदेशक – खाद्य नीति

एलन डैरर ब्राज़िल, मेक्सिको, अमेरिका, कनाडा, भारत और एशिया में काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय आहार-नीति टीम के मुखिया हैं। एक वैश्विक निदेशक (ग्लोबल डायरेक्टर) के रूप में वे रणनीतिक विकास एवं विश्व भर में कॉन्शस इटिंग कार्यकरम के विस्तार के लिए जिम्मेदार हैं। एलन यह मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन एवं स्वास्थ्य एक विश्वव्यापी मुद्दा है किन्तु प्रभावी परिवर्तन स्थानीय स्तर पर होता है।

हर्षदीप सिंघ

आहार नीति विशेषज्ञ

हर्षदीप सिंघ आहार नीति विशेषज्ञ के रूप में संस्थाओं के साथ घनिष्ठता से जुड़कर कार्य करते हैं तथा उन संस्थाओं को स्वास्थ्य एवं संवहनीयता के उनके लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करते हैं। आहार-कानून, लोक-नीति में अनुभव रखने वाले हर्षदीप इस बात पर केन्द्रित रहते हैं कि किस प्रकार सरकार और संस्थाएँ साथ आकर एवं सृजनात्मक रूप से लोक स्वास्थ्य एवं पर्यावरणीय प्रभावों की बेहतरी के लिए कार्य कर सकती हैं। भारत के विभिन्न भागों में रह चुके हर्षदीप आंचलिक आहारों पर ध्यान देने के महत्व को समझते हैं साथ ही वे यह भी सुनिश्चित करते हैं कि ये आहार हमारे स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिए लाभदायक हैं।

सलाहकार समिति

डॉ नंदिता शाह

डॉ नंदिता शाह

डॉ नंदिता शाह, SHARAN संस्था की संस्थापक हैं, जो भोजन का उपयोग दवा के रूप में करती है और हजारों लोगों को जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हाइपोथायरायड, पीसीओडी, ऑटोइम्यून रोग और कैंसर से छुटकारा दिलाने में मदद करती है।

डॉ. नंदिता शाह पेंगुइन इंडिया द्वारा प्रकाशित रिवर्सिंग डायबिटिज इन 21 डेज नामक चर्चित किताब की लेखिका हैं। स्वास्थ्य और पोषण के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें भारत के राष्ट्रपति से वर्ष 2016 में प्रतिष्ठित नारी शक्ति पुरस्कार प्राप्त हुआ था।

रोशनी संघवी

रोशनी संघवी

रोशनी संघवी एक वनस्पति आधारित फिटनेस/ पोषण एक्स्पर्ट और एक शरीर-परिवर्तन विशेषज्ञ हैं। वह अपने ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम के माध्यम से दुनिया भर के ग्राहकों के साथ काम करती हैं और उन्हें वनस्पति आधारित आहार में अपनाने में मदद करती हैं। उनका दृष्टिकोण सरल है, “अपने शरीर को बदलने के लिए आपको जीवन शैली में स्थायी बदलाव लाना पड़ेगा। और यह तभी संभव है जब आपकी प्लेट में भोजन न केवल पौष्टिक, बल्कि स्वादिष्ट भी हो।”

सुष्मिता सुब्बाराजू

सुष्मिता सुब्बाराजू

सुष्मिता सुब्बाराजू उर्फ सुष्मिता वेगनोसॉरस, भारत का पहला 100% नैतिक शाकाहारी रेस्तराँ कैरेट की मैनेजिंग पार्टनर हैं। कैरेट रेस्तराँ अनेक प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन परोसता है, जिसका उद्देश्य शाकाहारी भोजन से संबंधित सभी मिथकों को तोड़ना है। उनके पास वनस्पतिक व्यंजन विधि एवं वनस्पतिक बेकिंग के साथ-साथ पाककर्मियों को प्रशिक्षित करने का एक दशक से अधिक का अनुभव है। सुष्मिता को पढ़ाने, रेसिपी वीडियो बनाने, एथिकल आर्ट बनाने, अल्टरनेटिव हीलिंग, आध्यात्म और वीगन वूमेन एंटरप्रेन्योर तैय्यार करने का शौक है।

सिंथिया शुक

सिंथिया शुक

सिंथिया ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पारिस्थितिकी में एम.एससी. और विकासमूलक जीव-विज्ञान (इवोल्यूशनरी बायोलॉजी) में पीएचडी की है। वह वैश्विक स्वास्थ्य, संवहनीयता और जीव-वैज्ञानिक डेटा विश्लेषण के क्षेत्र में परामर्श कंपनी ओरिगेम साइंटा (2005-2017) की सह-संस्थापक और वैज्ञानिक निदेशक रह चुकी हैं। वह 50 से अधिक सहकर्मी-समीक्षित वैज्ञानिक लेखों, पुस्तक अध्यायों और शैक्षिक सामग्रियों की प्रतिष्ठित लेखिका हैं। पिछले 4 वर्षों में उन्होंने औद्योगिक पशु-कृषि के पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों पर व्यापक विश्लेषणात्मक कार्य किया है।

ताजा मीडिया कवरेज

"एक अध्ययन में पाया गया है कि पशु-उत्पादों की तुलना में प्राकृतिक वनस्पति से भरपूर पूर्णतः शाकाहारी भोजन पर्यावरण के लिए बेहतर हो सकता है। ऐसे आहार में पशु-उत्पादों का न्यूनतम उपभोग शामिल है जो अन्यथा पर्यावरण पर अधिक कुप्रभाव डालते है। ऐसा खासकर इसलिए होता है की पशुपालन उद्योग में ऊर्जा की बहुत अधिक जरूरत होती है और साथ ही इन औद्योगिक पशुओं द्वार ग्रीनहाउस गैस का अत्यधिक उत्सर्जन होता है।"
"अभी तक के सबसे बड़े विश्लेषण में लगे वैज्ञानिकों के अनुसार, मांस और डेयरी उत्पादों का त्याग, पृथ्वी पर आपके पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने का सबसे बड़ा तरीका है।"
"अंततः यदि दुनिया के सभी मांसाहारी लोग वनस्पति आधारित आहार अपना लें तो 2050 तक भोजन से संबंधित ग्रीनहाउस-गैस उत्सर्जन में लगभग आधे की कमी कर सकते हैं।"